Sunday, June 29, 2025

प्रॉक्सी से पॉलिटिक्स तक

 जो कॉलेज में मज़ाक था,

वो दुनिया में सिस्टम बन गया है।

"यार तेरा असाइनमेंट भेज, मैं थोड़ा बना के लिख देता हूँ।"

सरकार में हुआ —

"पिछली पार्टी के वादे कॉपी कर लो, नए स्लोगन में डाल दो।"

पर खैर ये झोल अगर और खंगाला जाए

तो पूरी पोल खुल जाएगी।

"भाई! मेरी क्लास में प्रॉक्सी मार आना, मुझे नींद आ रही है।"

"तू वोट दे आना मेरा, आख़िर तू भाई है मेरा।"

वहाँ रोल नंबर का मिसयूज़,

यहाँ आधार नंबर का अब्यूज़।

साल भर जो बिस्तर पर पड़े थे,

वो एक ही रात में सिलेबस खत्म करने लग गए

जैसे वीर सेना युद्धभूमि पर अड़ गई हो।

पर युद्ध की अर्जेंसी सिर्फ़ हमारी ही नहीं थी।

साल भर घूस खाने के बाद,

जब इलेक्शन आए तो मंत्री 'देश सेवा' पर निकल गए।

कॉलेज में प्रोफ़ेसर से नंबर बढ़वाते हैं,

पर देश में वोट बढ़ाने —

कुछ हाथ जोड़ जनता की बस्ती में घुस जाते हैं,

तो कुछ फ़ोन बात कर समाज सेवक कहलाते हैं।

और अंत में...

देश और कॉलेज में फ़र्क सिर्फ इतना है:

वहाँ डिग्री मिलती है — छोटे झूठों से।

यहाँ कुर्सी मिलती है — बड़े झूठों से।

                         

--oshii---

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